वर्मी कम्पोस्ट
जैविक खेती में वर्मी कम्पोस्ट उपयोगी खाद के रूप में आमदनी का उत्तम जरिया बन गया है| इस के तहत गोबर व घरेलू कचरे को कहस किस्म के केंचुओं द्वारा इस्तेमाल करा के बढ़िया खाद तैयार की जाती है|
बकरी पालन
बकरी पालन गरीब किसानों के लिए एक जोखिम कारोबार है| बकरी को गरीबों की गाय इसलिए कहा जाता है, क्योंकी यह काम देखरेख में दूध के साथ 1 बार में कई बच्चे पैदा करती है| हर ब्यात के बाद 6-7 महीने के अंदर यह फिर से गाभिन हो जाती है| इस व्यवसाय को 2-3 बकरियों से शुरू कर के 1 साल में 10-12 बकरियां पैदा हो जाती हैं| दुसरे साल में बकरियां का झुंड बन जाता है| समय समय पर बकरों या बकरियां को बेच कर आमदनी होती रहती है| बकरी पालन से फसलों के लिए मूल्यवान कार्बनिक खाद मिलती हैं, जो मिट्टी में पोषक तत्त्वों की पूर्ति के साथ साथ कार्बन का स्तर भी बढ़ाती है|
मधुमक्खी पालन
किसान तकनीकी जानकारी ले कर शुद्ध शहद का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं| इसे शुरू करने के लिए मधुमक्खी का बाक्स व एक कालोनी को खरीदना पड़ता है इस के बाद मधुमक्खियाँ अपनी कालोनी बढ़ाते हुए शहद उत्पादन करती रहती हैं| जाड़े के मौसम में फूल वाली फसलें खूब होने के कारण 4-5 बाक्स रखने से रोजाना 1 बोतल शुद्ध शहद मिलता है, जिसकी बाजार में कीमत करीब 100 रूपए होती है| इस व्यवसाय से मोम के रूप में अतिरिक्त लाभ होता है|
फल सब्जी उत्पादन
आर्थिक रूप से कमजोर किसान अपनी फसल के साथ साथ फल, सब्जी का उत्पादन कर के साल भरFruit आमदनी का जरिया बनाए रख सकते हैं| यदि मौसमी सब्जी को पहले या बाद में बनाए रख सकते हैं| यदि मौसमी सब्जी को पहले या बाद में उत्पादन कर के बाजार में उतारा जाए तो इस से ज्यादा लाभी मिलता है, इसी तरह फलदार पौधे जैसे केला, पपीता, करौंदा, आवंला, बेर व बेल वगैरह को खेत के चारों तरफ लगा कर अलग से आय प्राप्त कर सकते हैं|
इन पेड़ों से खेत हिफाजत भी हो जाती है| इस के अलावा जैम, जेली, आचार, मुरब्बा, सौस, केचअप, कैंडी, स्क्वैश व शरबत वगैरह बनाने का काम कर के भी छोटे मंझोले किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो सकते हैं|
मशरूम उत्पादन
मशरूम कम लागत में ज्यादा आमदनी देने वाली फसल है| इस में प्रोटीन सहित तमाम पोषक तत्त्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं| आर्थिक रूप काफी मात्रा में पाए जाते हैं| आर्थिक रूप से पिछड़े भूमिहीन, बेरोजगारी नवयुवकों के लिए यह आमदनी का अच्छा साधन बन सकता है| इस की मांग उत्सवों, शादी की पार्टियों व होटलों वगैरह में साल भर बनी रहती है|
मुर्गी पालन
छोटे व मझोले किसान सीमित क्षेत्रफल में हवादार शेड बना कर आसानी से मुर्गी पालन कर सकते हैं| रोजाना 2-3 घंटे समय दे कर 200- 250 ब्रायलर या 150 लेयर पाले जा सकते हैं| ब्रायलर 40-45 दिनों में बढ़ कर बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं| मुर्गी की बीट (कार्बनिक खाद) पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण फसल उत्पादन बढ़ाती हैं|